"माँ जीवन का सुजनात्मक पहलु है. वह संतान पैदा करने वाली मशीन नही
वरन पारिवारिक जीवन की आधारशिला है,
म्रत्यु के नाम पर किये जाने वाले तर्पण की बजाय उनकी जीवित अवस्था की गई सेवा ज्यादा मूल्य रखती है,
जो लोग "माँ" की जीवित अवस्था में उनसे अपना घर अलग बसा लेते है,
वे जीवन के "महान" पुण्य से वंशित रह जाते है",,